गाय गंगा और गौरी की रक्षा जरूरी -विनोद
कोल्हू तेल खाइए, आप स्वस्थ रहेंगे और बैल बचेंगें- पद्मश्री डा. शांति रॉय
पद्मश्री डा. शांति रॉयपद्मश्री डा. शांति रॉय ऑक्सीजन गौशाला से जुड़ी हुईं हैं और उन्होंने कहा कि बैल कोल्हू कैंपेन के ज़रिये हमारा मक़सद है कि समाज में बैल कोल्हू कोल्ड प्रेस्ड तेल के महत्ता को उजागर किया जाये। बैल कोल्हू कैम्पेन समाज, देश और हम सब के लिये बहुत उपयोगी है क्योंकि यह हमारे स्वास्थ्य के साथ बैलों का संरक्षण भी कर रहा है। हमारी देसी गाय का महत्व तो सभी जानते हैं, मगर बैल कोल्हू कैंपेन के द्वारा बैलों के महत्व और उपयोगिता को हमारे बीच में लाया जा रहा है।
बैल पहले खेती में काम आते थे, हर जगह कोल्हू से तेल निकलता था, गाड़ी खींचने के भी काम आते थे, और देश की ज्यादातर जनता बैलों पर निर्भर हुआ करती थी। मैं ख़ुद बैलगाड़ी के द्वारा अपने गाँव से स्टेशन तक का सफ़र पूरा करती थी। आज धीरे धीरे बैलों की चर्चा और उपयोगिता कम हो गई है और बैल हमारे जीवन से विलुप्त होते जा रहे हैं। इस वजह से समाज में बैलों की उपयोगिता पर थोड़ा प्रकाश डालना होगा।
आज जो हम पर्यावरण के दूषित होने से परेशान हैं, उस परेशानी में बहुत राहत मिल सकती है अगर हम बैलों को दोबारा अपने जीवन का हिस्सा बना लें। बैल कोल्हू द्वारा जो तेल निकलता है वह बूँद - बूँद करके निकलता है इसीलिए ये गर्म नहीं होता है, जबकि बाज़ार में मिलने वाले तेल में तपिश ज़्यादा होती है क्योंकि वह मशीन से निकाला जाता है। बाज़ार वाले तेल में बना ज़्यादा खा लिया तो तबियत बिगड़ सकती है परेशानियाँ आती हैं, पर बैल कोल्हू से निकाले गये तेल का सेवन करने से कोई भारीपन या तबियत ख़राब नहीं होगी। दूसरी चीज़ यह मैंने देखा है कि बाज़ार वाले तेल को एक बार गरम करके उपयोग करने के बाद उसका दोबारा इस्तेमाल नहीं कर सकते क्योंकि उसने कार्बन की मात्रा अधिक हो जाती है और वो खाने लायक़ नहीं रह जाता। जबकि बैल कोल्हू का तेल हम दोबारा उपयोग में ला सकते हैं।
बैल की महत्ता पर और चर्चा करें तो कोल्हू के अलावा जो ये गोबर देता है, वह सबसे शुद्ध खाद है हमारे खेतों के लिये। हमारे खेत बंजर होते जा रहे हैं, बर्बाद हो रहे हैं क्योंकि हम बाहर से खाद का उपयोग करते हैं जो केमिकल से भरपूर हैं और हमें बहुत नुक़सान पहुँचाते हैं, साथ ही पर्यावरण को दूषित करते हैं। गोबर के खाद से हमारा स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों ही बचे रहेंगे। गोबर को ईंधन और धूप के रूप में। ही उपयोग किया जा सकता है जो वातावरण को शुद्ध रखता है।
पद्मश्री डा. शांति रॉय ने बड़े भावनात्मक होकर बैलों की रक्षा करना हमारा धर्म है क्योंकि इनकी रक्षा मतलब पर्यावरण कि रक्षा, बेहतर स्वास्थ्य और शुद्ध भोजन। मैं चाहती हूँ कि हम सभी इस अभियान से जुड़ें और बैलों के संरक्षण में अपना हाथ बटायें।”
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