पिता : जो कभी भी अहसास नहीं कराता*
*पिता : जो कभी भी अहसास नहीं कराता*
रचना - *अनमोल कुमार*
मां की तरहां हक अपना जता नहीं पाता...
मोहब्बत करता तो हैं बराबर की
मगर बता नहीं पाता....
चीर लेता हैं,खुद का सीना
औलाद की खुशी की खातिर...
एक भी ज़ख्म मगर सीने का
दिखा नहीं पाता...
मेहनत करता हैं दिन रात
बच्चों के भविष्य की खातिर...
थका हारा मगर खुद को
दिखा नहीं पाता...
पिता देता हैं कुर्बानियां हर पल,रात दिन...
शिकन माथे की कभी
बच्चों को दिखा नहीं पाता....
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें