अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक 2025 अन्यायपूर्ण, अव्यवहारिक लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ पक्षपाती विधेयक - बबलू*
*अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक 2025 अन्यायपूर्ण, अव्यवहारिक लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ पक्षपाती विधेयक - बबलू*
यूथ एजेंडा
समस्तीपुर। एडवोकेट संजय कुमार बबलू बिहार बार एसोसिएशन पटना बिहार सह व्यवहार न्यायालय समस्तीपुर ने अधिवक्ता ( संशोधन) 2025 को अन्यायपूर्ण, पक्षपाती, अव्यवहारिक र्और लोकतांत्रिक व्यवस्था के ख़िलाफ़ विधेयक बताया।
केंद्रीय कानून मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक 2025 अन्यायपूर्ण, अव्यवहारिक और पक्षपाती एवं लोकतंत्र के खिलाफविधेयक हैं। यह विधेयक अधिवक्ताओं की एकता, स्वायत्तता और गरिमा के खिलाफ है और हिटलर और मुसोलिनी जैसे तानाशाहीपूर्ण प्रकृति का है। इस संशोधन विधेयक की सबसे विवादास्पद धारा 35A है, जिसमें उल्लेख किया गया है की कोई भी अधिवक्ता संघ या उसके सदस्य या कोई भी अधिवक्ता, व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से, अदालत के कार्य का बहिष्कार करने या उससे दूर रहने का आह्वान नहीं कर सकता, न ही कोई भी अधिवक्ता, व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से, अदालत के कार्य का बहिष्कार करने या उससे दूर रहने का आह्वान नहीं कर सकता, न ही किसी भी प्रकार से अदालत के कामकाज में बाधा डाल सकता है या अदालत परिसर में कोई अवरोध उत्पन्न कर सकता है। इस प्रावधान के तहत वकीलों के द्वारा हड़ताल और बहिष्कार करने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया लगाया जबकि लोकतांत्रिक देश में जनता को आंदोलन करने की स्वतंत्रता है वकीलों काभीपारंपरिक रूप मांगें उठाने का एक महत्वपूर्ण साधन रहा है। हालांकि, विधेयक में एक अपवाद भी दिया गया है, जिसके तहत प्रतीकात्मक या एक दिवसीय सांकेतिक हड़ताल की अनुमति होगी, बशर्ते कि इससे अदालत की कार्यवाही बाधित न हो या न्यायर्थियों के अधिकारों का उल्लंघन न हो। यदि कोई भी वकील इस प्रावधान का उल्लंघन करता है, तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जा सकती हैं। विधेयक की धारा 4 भी विवादास्पद है, क्योंकि इसमें केंद्र सरकार को बार काउंसिल ऑफ इंडिया में तीन सदस्यों को
नामित करने की शक्ति देने का प्रस्ताव किया गया है। वर्तमान में, इसमें केवल भारत के अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल शामिल होते हैं। यह प्रावधान कानूनी पेशे की स्वतंत्रता को कमजोर कर सकता है।
वकीलों की आवाज को दबाने का प्रयास इस अधिनियम के तहत की जा रही हैं। वकीलों को कोर्ट के कामकाज से हड़ताल या बहिष्कार करने पर रोक लगाई गई है (धारा 35A) यह प्रावधान वकीलों के संवैधानिक अधिकार, (अनुच्छेद 19 अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) का हनन करता है।
अधिवक्ता भी नागरिक होते हैं और भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में किसी नागरिकों को अपनी मांगों और समस्याओं को उठाने के लिए हड़ताल या बहिष्कार एक महत्वपूर्ण संवैधानिक हथियार होता है। इसे छीन लेना अधिवक्ताओं की आवाज को दबाने जैसा है। कोर्ट के कार्य छोड़ कर अपने अधिकारों के लिए हड़ताल या बहिष्कार करने पर इस में अनुचित दंड की राशि का प्रावधान शामिल किया गया है। इस अधिनियम में वकीलों पर 3 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाने का प्रावधान है जो सरकार का तुगलकी फरमान है यह आर्थिक दंड अधिवक्ताओं के पेशेवर आचरण को लेकर है, लेकिन इसे लागू करने का तरीका पक्षपातपूर्ण हो
सकता है। इससे अधिवक्ताओं पर अनावश्यक दबाव बनेगा और उनकी स्वतंत्रता प्रभावित होगी। झूठी शिकायतों पर आर्थिक दंड, लेकिन अधिवक्ताओंके लिए कोई सुरक्षा नहीं। अगर कोई शिकायत झूठी या फिजूल पाई जाती है, तो शिकायतकर्ता पर 50,000 रुपये तक का आर्थिक दंड लगाया जा सकता है हालांकि अगर अधिवक्ताओं के खिलाफ झूठी शिकायत दर्ज की जाती है, तो उसके लिए कोई सुरक्षा नहीं है।
यह कानून एकतरफा और अन्यायपूर्ण है। धारा 36 मेंअधिवक्ताओं को तुरंत निलंबित करने का अधिकार बार काउंसिल ऑफ इंडिया को दिया गया है कि वह किसी भी वकील को तुरंत निलंबित कर सकती है lयह प्रावधान वकीलों के खिलाफ दुरुपयोग को बढ़ावा दे सकता है। बिना उचित जांच के किसी को निलंबित करना अन्यायपूर्ण है। न्याय प्रणाली में अधिवक्ताओं की भूमिका को कमजोर करना अन्याय हैं। देश के अधिवक्ता न्याय प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं उनके बिना न्याय प्रक्रिया अधूरी है। इस अधिनियम के तहत अधिवक्ताओं को अनुशासनात्मक कार्यवाही का डर दिखाकर उनकी स्वतंत्रता को कमजोर किया जा रहा है। यह न्याय प्रणाली के लिए खतरनाक है। केन्द्र सरकार एवं केन्द्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय से यहीं सवाल हैं कि क्या अधिवक्ताओं की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाकर कानून में निष्पक्षता, पारदर्शिता एवं न्याय सब के लिए सुलभ बनाई जा सकती हैं । अधिवक्ताओंके आवाज को बंद कराकर वर्तमान सरकार न्यायसंगत, समतापूर्ण और विकसित राष्ट्र का निर्माण नहीं कर सकतीहैं। एन जी ओ संघ बिहार के सचिव एडवोकेट संजय कुमार बबलू ने अधिवक्ता संशोधन विधेयक 2025 को काला विधेयक बताते हुए कहा है इस प्रकार का विधायक पूर्णतः अलोकतांत्रिक है सरकार को अविलंब इसमें सुधार करना चाहिए यदि सरकार अपने जिद पर अड़ी है तो अधिवक्ताओं को अपने अधिकार और लोकतांत्रिक संविधान की रक्षा के लिए एकजुट होकर इस सरकार के खिलाफ हमला बोलने की आवश्यकता है l
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