*ई जिनगी येही लेखा चलत रहीं*
*ई जिनगी येही लेखा चलत रहीं*
रचना - अनमोल कुमार
केहु साथ दी , केहु छलत रहीं.
केहु खुश होई केहु जलत रहीं.
ई ज़िनगी येही लेखा चलत रहीं.
दुख - सुख तऽ जात आवत रही
कबो हँसाइ त कबो रूलावत रही
क़बो दिन चढ़ी, कबो ढलत रही
ई ज़िनगी येही लेखा चलत रहीं
जे आपन बा उहो पराया होई
बहुत कुछ जिनगी में नया होई
केहु धधाई केहूं हाथ मलत रहीं
ई ज़िनगी येही लेखा चलत रहीं
अनहरियाँ बा त अजोरों होई
ये रतिया एक दिन भोरों होई
केहु सोहाई केहु आँख में हलत रही
ई ज़िनगी येही लेखा चलत रहीं
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